नरेंद्र मोदी के विश्वासघात के ग्यारह साल: खरीफ एमएसपी C2+50% के वादे से बहुत कम
लंबी अवधि के आंकड़ों में एमएसपी की वृद्धि दर वास्तविक रूप में गिरावट दर्शाती है
पिछले दो दशकों में खाद्यान्न उत्पादन के हिस्से के रूप में खरीद लगभग स्थिर रहीअशोक ढ़वले , अध्यक्ष
विजू कृष्णन, महासचिव
किसान सभा
भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा खरीफ सीजन 2025-26 के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य ( खरीफ सीजन 2025-26 ) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक और विश्वासघात है; सटीक रूप से कहें तो लगातार ग्यारहवीं बार खरीफ के लिए किसानों को धोखा ही मिला है। भाजपा सरकार ने बड़े-बड़े दावे किए हैं कि उसने 2025-26 के खरीफ सीजन के लिए 2.07 लाख करोड़ रुपये के एमएसपी पैकेज को मंजूरी देकर किसानों को बड़ी राहत दी है। कॉरपोरेट मीडिया ने भी तुरंत इस दावे को दोहराया शुरू कर दिया के नए एमएसपी से उत्पादन लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत लाभ सुनिश्चित होगा। हकीकत में यह दावा सच्चाई से कोसों दूर है। भाजपा सरकार ने जानबूझकर जनता को गुमराह करने के लिए आंकड़ों में बाजीगरी करते हुए असल तथ्यों को छिपाया है।
डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग ने अपनी 2006 की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा था कि किसानों को कृषि संकट से उबारने के लिए उन्हें खेती की व्यापक लागत सी2 से कम से कम 50% अधिक लाभकारी मूल्य दिया जाना चाहिए। हालांकि, 19 साल बाद भी यह खोखले वादे ही बने हुए हैं। यहां तक कि घोषित एमएसपी भी ज्यादातर कागजों पर ही रहता है, क्योंकि कोई सुनिश्चित खरीद नहीं होती है। घोषित एमएसपी और किसानों को मिलने वाली कीमत के बीच काफी अंतर है। खेती की लागत सर्वेक्षण से पता चलता है कि धान किसानों को मिलने वाला औसत मूल्य 2021-22 में एमएसपी ए2+एफ एल (मूल लगत व पारिवारिक श्रम) से 36% कम था (नवीनतम डेटा उपलब्ध है)। तेलंगाना में तुअर/अरहर के किसानों को 2021-22 में मिलने वाला औसत मूल्य एमएसपी से 11 फीसदी कम था। इसका मतलब है कि एमएसपी का लाभ ज्यादातर किसानों तक नहीं पहुंच रहा है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एमएसपी पर दीर्घकालिक डेटा लगभग सभी फसलों, विशेषकर धान के लिए वास्तविक एमएसपी की वृद्धि में मंदी दर्शाता है। उदाहरण के लिए, धान के लिए वास्तविक एमएसपी 2004-05 और 2013-14 के बीच सालाना 1.17% की दर से बढ़ा, जो 2014-15 से 2025-26 की अवधि के दौरान घटकर 0.53% प्रति वर्ष हो गया। अध्ययन की गई 16 फसलों में से 9 फसलों ने 2014-15 से 2025-26 के बीच वास्तविक एमएसपी वृद्धि में तेज मंदी दिखाई।
खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल धान के बारे में सरकार की प्रेस विज्ञप्ति लगभग खामोश रही है, क्योंकि सच्चाई यह है कि इसके एमएसपी में मात्र 69 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है। सीएसीपी द्वारा अनुमानित राष्ट्रीय औसत लागत के अनुसार, धान के लिए सी2+50% मूल्य 3,135 रुपये प्रति क्विंटल आता है, लेकिन घोषित एमएसपी केवल 2,369 रुपये है, जिसका अर्थ है प्रति क्विंटल 766 रुपये का घाटा। अगर हम धान के लिए राज्यों द्वारा अनुमानित लागत को देखें, तो यह पंजाब में 2787 रुपये, तेलंगाना में 3673 रुपये और महाराष्ट्र में 4159 रुपये प्रति क्विंटल है। इन राज्यों ने क्रमशः 4,281 रुपये, 5,510 रुपये और 4,783 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी की सिफारिश की थी। यह साफ तौर पर दर्शाता है कि कई राज्यों में, सरकारी आंकड़ों के अनुसार भी किसानों को धान की फसल की बिक्री से अपनी उत्पादन लागत निकालने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। सीएसीपी के अनुसार, पूरे भारत में 2023-24 में केवल 17.3 प्रतिशत धान किसानों को एमएसपी पर खरीद का लाभ मिला है। भाजपा-एनडीए शासित राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश (5.8%), बिहार (4.1%), असम (5% से कम) और कांग्रेस शासित कर्नाटक, जेएमएम शासित झारखंड में एमएसपी पर धान की खरीद बहुत कम थी, यहाँ 5 प्रतिशत से भी कम किसानों से धान की खरीद की गई। अधिकांश राज्यों ने सीएसीपी लागत अनुमानों की तुलना में लागत अधिक होने का भी उल्लेख किया था। ‘एग्रीकल्चरल स्टैटिस्टिक्स एट अ ग्लांस 2023–24 कृषि वर्ष’ के आंकड़ों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि खरीद स्तर और एमएसपी में वृद्धि के बीच तालमेल की कमी है। तूर/अरहर उत्पादन का केवल 0.23 प्रतिशत, मूंगफली उत्पादन का 0.72 प्रतिशत और कपास उत्पादन का 9.3 प्रतिशत ही खरीदा गया।
सरकार ने बढ़ा-चढ़ाकर दावा किया कि नाइजरसीड के लिए एमएसपी में 820 रुपये, रागी के लिए 596 रुपये, कपास के लिए 589 रुपये और तिल(सेसामुम) के लिए 579 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है। लेकिन ये बढ़ी हुई कीमतें भी सी2+50% स्तर से बहुत कम हैं और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। नाइजरसीड के लिए एमएसपी 9,537 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई है, जबकि सी2+50% कीमत 12,037 रुपये होनी चाहिए – यानी किसान को प्रति क्विंटल 2,500 रुपये का नुकसान होगा। इसी तरह रागी के मामले में सरकार ने एमएसपी 4,886 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है, लेकिन सीएसीपी के अनुमानों के अनुसार सी2+50% कीमत 5,964 रुपये होनी चाहिए – यानी किसान को सी2+50% कीमत से 1,078 रुपये प्रति क्विंटल कम मिलेगा। कपास के आंकड़ों पर गौर करें तो सी2+50% कीमत ₹10,075 प्रति क्विंटल है, जबकि सरकार ने केवल ₹7,710 का एमएसपी घोषित किया है – जिससे किसान को ₹2,365 प्रति क्विंटल के नुकसान पर फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि तेलंगाना सरकार ने 2024-25 में कपास के लिए ₹16,000 प्रति क्विंटल की मांग की थी। तिल में, सी2+50% कीमत ₹12,948 होनी चाहिए, लेकिन सरकार ने ₹9,537 सीएसीपी घोषित किया है – जिसके परिणामस्वरूप किसान को प्रति क्विंटल ₹3,102 का नुकसान होगा है।
फ़सल | सीएसीपी उत्पादन लगत | सी 2+50% | एमएसपी | घाटा प्रति क्विंटल |
धान | 2090 | 3135 | 2369 | 766 |
ज्वार | 3206 | 4809 | 3699 | 1110 |
बाजरा | 2209 | 3313 | 2775 | 538 |
रागी | 3976 | 5964 | 4886 | 1078 |
मक्का | 1952 | 2928 | 2400 | 528 |
तुर/अरहर | 6839 | 10258 | 8000 | 2258 |
मूंग | 7476 | 11214 | 8768 | 2446 |
उड़द | 6829 | 10243 | 7800 | 2443 |
मूंगफली | 6047 | 9070 | 7263 | 1807 |
सूरजमुखी के बीज | 6364 | 9546 | 7721 | 1825 |
सोयाबीन(पीला) | 4638 | 6957 | 5328 | 1629 |
तिल(सेसामुम) | 8632 | 12948 | 9846 | 3102 |
रामतिल (नाइजरसीड) | 8025 | 12037 | 9537 | 2500 |
कपास | 6717 | 10075 | 7710 | 2365 |
ज्वार में, सरकार द्वारा घोषित एमएसपी ₹3,699 प्रति क्विंटल है, लेकिन सीएसीपी के अनुसार सी2+50% कीमत ₹4,809 होगी – जिसका अर्थ है कि किसान को प्रति क्विंटल ₹1,110 कम मिलेंगे। इतना ही नहीं, कर्नाटक के लिए – सीएसीपी प्रक्षेपित लागत ₹3,802 है और राज्य की अनुमानित लागत ₹5,232 प्रति क्विंटल है, जबकि महाराष्ट्र की अनुमानित लागत ₹4,163 है – जिसका अर्थ है कि इन राज्यों में फसल की बिक्री से होने वाली आय खेती की लागत को भी पूरा नहीं करेगी। बाजरे और मक्का के मामले में भी यही स्थिति है। बाजरा के लिए एमएसपी ₹2,775 और मक्का के लिए ₹2,400 प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है, जबकि सीएसीपी के अनुमानों के आधार पर सी2+50% लागत क्रमशः ₹3,313 और ₹2,928 है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में भी राज्य सरकार ने मक्का के लिए उत्पादन की लागत ₹2,991 अनुमानित की है और ₹4,550 एमएसपी सुझाया है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई गुजराती किसान केंद्र के एमएसपी पर मक्का बेचता है, तो उसे उत्पादन लागत से 591 रुपये कम मिलेंगे।
किसानों को होने वाले उपरोक्त नुकसान भी सरकार द्वारा अनुमानित लागत पर आधारित हैं। सच्चाई यह है कि उत्पादन की वास्तविक लागत सीएसीपी द्वारा अनुमानित लागत से कहीं अधिक है। लगातार बढ़ती इनपुट लागत किसानों के खर्चे बढ़ा रही है, लेकिन उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। देश में व्याप्त कृषि संकट और किसानों की आत्महत्याओं के पीछे यही कारण है।
अखिल भारतीय किसान सभा भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को आंकड़ों में हेराफेरी करने और जनता को गुमराह करने से बचने की चेतावनी देती है। किसान सभा अपनी सभी इकाइयों से आह्वान करती है कि वे इन झूठे दावों का पर्दाफाश करें। किसान सभा अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर फसलों की उचित कीमत की मांग को लेकर तीखा आंदोलन चलाएगी।
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